Shodashi - An Overview

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दिव्यौघैर्मनुजौघ-सिद्ध-निवहैः सारूप्य-मुक्तिं गतैः ।

बिंदु त्रिकोणव सुकोण दशारयुग्म् मन्वस्त्रनागदल संयुत षोडशारम्।

सानन्दं ध्यानयोगाद्विसगुणसद्दशी दृश्यते चित्तमध्ये ।

Shodashi is deeply connected to The trail of Tantra, wherever she guides practitioners towards self-realization and spiritual liberation. In Tantra, she is celebrated because the embodiment of Sri Vidya, the sacred understanding that brings about enlightenment.

Shodashi’s Strength fosters empathy and kindness, reminding devotees to strategy Other individuals with comprehension and compassion. This reward promotes harmonious associations, supporting a loving approach to interactions and fostering unity in relatives, friendships, and community.

लक्ष्मीशादि-पदैर्युतेन महता मञ्चेन संशोभितं

कैलाश पर्वत पर नाना रत्नों से शोभित कल्पवृक्ष के नीचे पुष्पों से शोभित, मुनि, गन्धर्व इत्यादि से सेवित, मणियों से मण्डित के मध्य सुखासन में बैठे जगदगुरु भगवान शिव जो चन्द्रमा के अर्ध भाग को शेखर के रूप में धारण किये, हाथ में त्रिशूल और डमरू लिये वृषभ वाहन, जटाधारी, कण्ठ में वासुकी नाथ को लपेटे हुए, शरीर में विभूति लगाये हुए देव नीलकण्ठ त्रिलोचन गजचर्म पहने हुए, शुद्ध स्फटिक के समान, हजारों सूर्यों के समान, गिरजा के अर्द्धांग भूषण, संसार के कारण विश्वरूपी शिव को अपने पूर्ण भक्ति भाव से साष्टांग प्रणाम करते हुए उनके पुत्र मयूर वाहन कार्तिकेय ने पूछा —

देवीभिर्हृदयादिभिश्च परितो विन्दुं सदाऽऽनन्ददं

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By embracing Shodashi’s teachings, folks cultivate a everyday living enriched with objective, like, and link to your divine. Her blessings remind devotees of your infinite splendor and wisdom that reside within just, empowering them to Dwell with authenticity and joy.

लक्ष्या या पुण्यजालैर्गुरुवरचरणाम्भोजसेवाविशेषाद्-

श्री-चक्रं शरणं व्रजामि सततं सर्वेष्ट-सिद्धि-प्रदम् ॥११॥

देवीं कुलकलोल्लोलप्रोल्लसन्तीं शिवां पराम् ॥१०॥

साम्राज्ञी सा मदीया मदगजगमना दीर्घमायुस्तनोतु ॥४॥

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